मै घर कब आऊंगा माँ कैलेण्डर मे देखा करती उस महीने को…..
गर्मियों मे अपने आँचल से पोछती मेरे चेहरे के पसीने को!!
ओ मेरी छोटी सी रोटी पर ढेर सारा घी लगाती है!!!!
इन शहरो मे हज़ारों भोजनालय तो क्या माँ की रोटीयो की बहुत याद आती है
-राहुल यादव राजा बाबू की कलम से